बसंत ऋतु की एक अपनी सुगंध है । इसका एक अपना जादू है । ये संदेश लाती है नए जीवन का । कैसे प्रकृति खिल उठती है ! कैसे पेड़ों की शाख़ें फिर हरी हो जाती हैं ! और ये पतझड़ और हरियाली का सिलसिला सतत चलता रहता है । अनंत, अबाध । हमारे अंतस में भी कुछ खिल रहा होता है, अनंत, अबाध । महसूस करें इसे । क्षण, प्रतिक्षण इस पुलक को, इस महक को !
बसंत ऋतु का एक और संदेश भी है: समता । इस ऋतु में न ठंड होती है, न गर्मी होती है । एक संतुलन होता है । साथ ही ठंड भी होती है और गर्मी भी होती है । यानि दोनों होते भी हैं और नहीं भी होते । इसीलिए, बसंत एक जीवंत विरोधाभास है । जो भी जीवन के विरोधाभासों को देख पाता है, जान पाता है, उन्हें स्वीकार कर पाता है, उसका जीवन बसंत ऋतु जैसा ताज़ा और संतुलित हो जाता है ।